गजल-मनीराम साहू मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
टोर झन जोर बनही बनौकी।
जग सरी तोर बनही बनौकी।
गोठ करबे सदा नीक कोंवर,
मीठ रस घोर बनही बनौकी।
छोड़ के द्वेष मन ला मिला ले,
गाँठ सब छोर बनही बनौकी।
वो बनाये हवै भेद भिथिया,
झन सजा फोर बनही बनौकी।
चार दिन हे रहे बर जगत मा,
छोड़ मैं मोर बनही बनौकी।
जस कमाये हवयँ तोर पुरखा,
नाँव झन बोर बनही बनौकी।
जे चलय पाप छल बाट ओकर,
तीर झन लोर बनही बनौकी।
उँन जनम देय लाये हवयँ जग,
रोज कर सोर बनही बनौकी।
सुन मनी तैं सदा राख सप्फा,
घर गली खोर बनही बनौकी।
मनीराम साहू मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
टोर झन जोर बनही बनौकी।
जग सरी तोर बनही बनौकी।
गोठ करबे सदा नीक कोंवर,
मीठ रस घोर बनही बनौकी।
छोड़ के द्वेष मन ला मिला ले,
गाँठ सब छोर बनही बनौकी।
वो बनाये हवै भेद भिथिया,
झन सजा फोर बनही बनौकी।
चार दिन हे रहे बर जगत मा,
छोड़ मैं मोर बनही बनौकी।
जस कमाये हवयँ तोर पुरखा,
नाँव झन बोर बनही बनौकी।
जे चलय पाप छल बाट ओकर,
तीर झन लोर बनही बनौकी।
उँन जनम देय लाये हवयँ जग,
रोज कर सोर बनही बनौकी।
सुन मनी तैं सदा राख सप्फा,
घर गली खोर बनही बनौकी।
मनीराम साहू मितान
बहुत-बहुत धन्यवाद षर्मा जी छंद खजाना मा ठउर दे बर
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