Total Pageviews

Saturday 11 July 2020

गजल-मनीराम साहू मितान

गजल-मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन  अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212  212  212 2

टोर झन जोर बनही बनौकी।
जग सरी तोर बनही बनौकी।

गोठ करबे सदा नीक कोंवर,
मीठ रस घोर बनही बनौकी।

छोड़ के द्वेष मन ला मिला ले,
गाँठ सब छोर बनही बनौकी।

वो बनाये हवै भेद भिथिया,
झन सजा फोर बनही बनौकी।

चार दिन हे रहे बर जगत मा,
छोड़ मैं मोर बनही बनौकी।

जस कमाये हवयँ तोर पुरखा,
नाँव झन बोर बनही बनौकी।

जे चलय पाप छल बाट ओकर,
तीर झन लोर बनही बनौकी।

उँन जनम देय लाये हवयँ जग,
रोज कर सोर बनही बनौकी।

सुन मनी तैं सदा राख सप्फा,
घर गली खोर बनही बनौकी।

मनीराम साहू मितान

1 comment:

  1. बहुत-बहुत धन्यवाद षर्मा जी छंद खजाना मा ठउर दे बर

    ReplyDelete

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...