गजल -दिलीप वर्मा
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1222 1222 1222 1222
बता के भोकवा मोला, अपन हर घर चलावत हे।
अरे कहिके सदा मोला अपन ओ तिर बलावत हे
ददा के बात नइ मानय न दाई के सुनय काँही।
गले नइ दार हा तबले अपन मर्जी गलावत हे।
दलाली खोखला कर दिस हमर ये देश ला भाई।
सड़क माटी पटाये छत बिना छड़ के ढलावत हे।
सबो झन जानथे फाँसी चढ़ाना बस हवय बाँकी।
बने कानून अइसे हे समे बस हा टलावत हे।
दिखावत हे सबो सपना पलटही भाग जनता के।
बने सरकार ककरो भी सदा जनता छलावत हे।
कलम के जोर मा बदलाव लाने बर लिखे पोथी।
पढ़य नइ आजकल कोनो समझ रद्दी जलावत हे
धरे पिस्तोल अपराधी बिना डर के घुसे घर मा।
लुटइया लूट के लेगे पुलिस डण्डा हलावत हे।
रचनाकार- दिलोप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1222 1222 1222 1222
बता के भोकवा मोला, अपन हर घर चलावत हे।
अरे कहिके सदा मोला अपन ओ तिर बलावत हे
ददा के बात नइ मानय न दाई के सुनय काँही।
गले नइ दार हा तबले अपन मर्जी गलावत हे।
दलाली खोखला कर दिस हमर ये देश ला भाई।
सड़क माटी पटाये छत बिना छड़ के ढलावत हे।
सबो झन जानथे फाँसी चढ़ाना बस हवय बाँकी।
बने कानून अइसे हे समे बस हा टलावत हे।
दिखावत हे सबो सपना पलटही भाग जनता के।
बने सरकार ककरो भी सदा जनता छलावत हे।
कलम के जोर मा बदलाव लाने बर लिखे पोथी।
पढ़य नइ आजकल कोनो समझ रद्दी जलावत हे
धरे पिस्तोल अपराधी बिना डर के घुसे घर मा।
लुटइया लूट के लेगे पुलिस डण्डा हलावत हे।
रचनाकार- दिलोप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
धन्यवाद
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