गजल दिलीप वर्मा
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222
लगे सावन महीना मा घुमड़ के छाय हे बादर।
बरस बीते बहुत के बाद अइसन आय हे बादर।
कभू आके दिखा ठेंगा मिले बिन ओ मटक देथे।
समे ओखरा हवय जाने, बहुत इतराय हे बादर।
बड़ा नटखट हवय उदबित बरज कतको कहाँ माने।
गरज के जोर से हमला बहुत डरव्हाय हे बादर।
सुरुज ला ढाँक राहत देत हे आसाढ़ के लगती।
समे पहिली लगे एसो बने भदराय हे बादर।
उठत हे जोर से लगथे प्रलय ये लान तक देही।
जवानी मा बने घपटे गजब करियाय हे बादर।
करामत कर दिखाये हे रहे परिया परे धरती।
किसानी देख एसो के बहुत मुसकाय हे बादर।
जवानी जोश जब मारे करय तांडव सहीं नाचा।
बड़ा भारी अपन ओ रूप तक दिखलाय हे बादर।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222 1222 1222 1222
लगे सावन महीना मा घुमड़ के छाय हे बादर।
बरस बीते बहुत के बाद अइसन आय हे बादर।
कभू आके दिखा ठेंगा मिले बिन ओ मटक देथे।
समे ओखरा हवय जाने, बहुत इतराय हे बादर।
बड़ा नटखट हवय उदबित बरज कतको कहाँ माने।
गरज के जोर से हमला बहुत डरव्हाय हे बादर।
सुरुज ला ढाँक राहत देत हे आसाढ़ के लगती।
समे पहिली लगे एसो बने भदराय हे बादर।
उठत हे जोर से लगथे प्रलय ये लान तक देही।
जवानी मा बने घपटे गजब करियाय हे बादर।
करामत कर दिखाये हे रहे परिया परे धरती।
किसानी देख एसो के बहुत मुसकाय हे बादर।
जवानी जोश जब मारे करय तांडव सहीं नाचा।
बड़ा भारी अपन ओ रूप तक दिखलाय हे बादर।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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