छत्तीसगढ़ी गजल-अरुण कुमार निगम
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
इही माटी मा जीना हे इही माटी मा मरना हे।
हमर सुरता करय दुनिया कुछ अइसन काम करना हे।
सुराजी के मजा ला जान पाही का कभू बइला
फँदाए हे जे घानी मा बँधे खूँटा किंजरना हे।
हमर छत्तीसगढ़ मा तो लिखे बर हें जिनिस लाखों
इहाँ दू चार कवि मन ला जरी मुनगा चुचरना हे
कमीशन खा के ठेकेदार मन करथें ढलाई तब
कहूँ पुल ला दरकना हे कहूँ छत ला पझरना हे।
अमावस एक रतिहा के "अरुण" तँय काट ले हँस के
करय कतको जतन कोनो, चंदैनी ला बगरना हे।
*अरुण कुमार निगम*
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
इही माटी मा जीना हे इही माटी मा मरना हे।
हमर सुरता करय दुनिया कुछ अइसन काम करना हे।
सुराजी के मजा ला जान पाही का कभू बइला
फँदाए हे जे घानी मा बँधे खूँटा किंजरना हे।
हमर छत्तीसगढ़ मा तो लिखे बर हें जिनिस लाखों
इहाँ दू चार कवि मन ला जरी मुनगा चुचरना हे
कमीशन खा के ठेकेदार मन करथें ढलाई तब
कहूँ पुल ला दरकना हे कहूँ छत ला पझरना हे।
अमावस एक रतिहा के "अरुण" तँय काट ले हँस के
करय कतको जतन कोनो, चंदैनी ला बगरना हे।
*अरुण कुमार निगम*
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