ग़ज़ल--आशा देशमुख
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
कोन हावय जगत मा बिना दाग के।
धोय निर्मल करम हा बिना झाग के।
गीत संगीत खोजे नवा रोज धुन
का नकल कर सकँय कोयली राग के।
गोठ बोली घलो स्वाद देथे अबड़
बाँध लाड़ू परोसे बिना पाग के।
लोभ इरखा गरब छल कभू झन करव
लोग भोगत हे सुख दुख अपन भाग के।
रोज माली करय प्रभु सुनव प्रार्थना
सब कली फूल महकत रहय बाग के।
एक जइसे रहय नइ ये जिनगी कभू
भोग छप्पन मिले या बिना साग के।
देख तो घर गली खोर माते गियाँ
छाय हावय नशा रँग खुशी फाग के।
आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा
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