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Saturday, 4 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया" *बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*

*212  212  212  2*

तोर ले तो गजब आस हावै।
मोर मन तोर रे पास हावै।1

छाये प्लास्टिक जमाना मा अइसन।
लोटा थारी न गिल्लास हावै।2

रोज मातम मनावँव इहाँ मैं।
देख माते  उहाँ रास हावै।3

हात कहिके कुकुर ला भगायेन।
देख सबके उही खास हावै।4

भाये मुर्दा घलो नाक ला आज।
हिरदे धड़के तिहाँ बास हावै।5

हार जाहूँ कहे दौड़ घोड़ा।
खर धरे आस अउ घास हावै।6

साधु सपना सजाये सँवारे।
बस दिखावा के सन्यास हावै।7

राज के होय उद्धार कइसे।
राम के रोज बनवास हावै।8

जे उजाड़े सदा बन बगीचा।
ओखरे घर अमलतास हावै।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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