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Saturday 4 July 2020

गजल

गजल- दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2

कान काबर उठाये हवच तँय।
बात सुन काय पाये हवच तँय।

लोग भूखा हवँय तोर कारण।
आज बिरियानी खाये हवच तँय।

ज्ञान पाये इहाँ लोग आवँय।
सोच मदिरा चढाये हवच तँय।

जीव हत्या कहे तँय बुराई।
आज बकरा पकाये हवच तँय।

तोर जोड़ी बसे दूर देशे।
रूप काबर सजाये हवच तँय? 

काम करके इहाँ जेन खावय।
तेन ला बड़ सताये हवच तँय।

बैर करना कहे तँय बुराई।
बात मन मा दबाये हवच तँय।

शान शौकत दिखाना गजब हे।
धन सबो ला लुटाये हवच तँय।

कोन आही बता तोर घर मा।
लाल मखमल जठाये हवच तँय।

राह काखर निहारे बता दे।
सेंट भारी लगाये हवच तँय।

कोन जाने रहे कब ले भूखा।
कोटना मुँह डुबाये हवच तँय।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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