गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
रात मा चाँदनी खूब चमकत हवे।
भोर सूरज धरे आग दहकत हवे।।
सुन ले ज्यादा मया जाथे बन तो सजा।
छाय बादर सही खूब कड़कत हवे।।
आजा परदेश ले लौट के तैं पिया।
कर अगोरा दुनों आँख फरकत हवे।।
पालबे जेन ला चार कौंरा खिला।
बाद बनके उही साँप लहुकत हवे।।
गाँव ले जोड़ लिन छाँव नाता चलौ।
खेत नरवा नदी प्रेम छलकत हवे।।
जोत शिक्षा जला नोनी बाबू पढ़ा।
फूल बगिया सहीं ज्ञान महकत हवे।।
पेड़ समता उगे मन गजानंद के।
छाँव बइठे सबो आज चहकत हवे।।
गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
सुग्घर
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