ग़ज़ल-ज्ञानु
बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम
फाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212 212
तोर बिन दिन पहावय नही का करौ
मन घलो मोर मानय नही का करौ
मोहनी डारे हवय का मया के अपन
अन्न पानी सुहावय नही का करौ
रोज लड़ना झगड़ना करे रातदिन
चाहथे का बतावय नही का करौ
हाल बइहाँ बरन मोर हे सोच सोच
अउ ग़ज़ल हा लिखावय नही का करौ
एक जेखर रिहिस हे भरोसा इहाँ
साथ ओहर निभावय नही का करौ
बात कस बात राहय नही फेर वो
मन ले खुन्नस हटावय नही का करौ
'ज्ञानु' गहरा मया मा मिले ये
जखम
घाव जल्दी मिटावय नही का करौ
ज्ञानु
सुग्घर
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