गजल-मनीराम मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
झन बइठ ठेलहा कर कुछू कर।
लोग लइका अपन बर कुछू कर।
गोठ हाबय सुघर जी सिखोना,
चेत कर अउ बने धर कुछू कर।
दे भगा मार अँधियार बइरी,
दीप बाती सहीं जर कुछू कर।
धान पुन के हवय जी बढ़ाना,
खातू माटी असन सर कुछू कर।
हे तपत देख मेड़ो म बइरी,
कोदई कस बने छर कुछू कर।
शांति पाबे नँगत जान ले तैं,
दुःख पर के घलो हर कुछू कर।
काय पाबे अपन ला हरो के,
मूँग छाती म झन दर कुछू कर।
होय रुख ला घलो कष्ट पीरा,
बन के आँसू बता ढर कुछू कर।
बात कहिदे मनी सच गजल लिख,
थोरको आज झन डर कुछू कर।
मनीराम साहू मितान
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
झन बइठ ठेलहा कर कुछू कर।
लोग लइका अपन बर कुछू कर।
गोठ हाबय सुघर जी सिखोना,
चेत कर अउ बने धर कुछू कर।
दे भगा मार अँधियार बइरी,
दीप बाती सहीं जर कुछू कर।
धान पुन के हवय जी बढ़ाना,
खातू माटी असन सर कुछू कर।
हे तपत देख मेड़ो म बइरी,
कोदई कस बने छर कुछू कर।
शांति पाबे नँगत जान ले तैं,
दुःख पर के घलो हर कुछू कर।
काय पाबे अपन ला हरो के,
मूँग छाती म झन दर कुछू कर।
होय रुख ला घलो कष्ट पीरा,
बन के आँसू बता ढर कुछू कर।
बात कहिदे मनी सच गजल लिख,
थोरको आज झन डर कुछू कर।
मनीराम साहू मितान
बहुत बहुत बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद वर्मा जी
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