गज़ल - अजय अमृतांशु
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
पाले हे झेल के दुख बतावय नहीं।
पीरा दाई ददा हा दिखावय नहीं।
किस्सा दादी के संगी नँदागे हवय।
लोरी गा के कहूँ अब सुलावय नहीं।
टूटगे मोर कनिहा कमावत हँवव।
लक्ष्मी जाथे कहाँ घर मा आवय नहीं।
खेत गहना धराये हवय भाई गा।
कर्जा लदकाय भारी छुटावय नहीं।
मेंहदी हाथ दूनों रचाये हवय।
बेटी दाहिज बिना अब बिहावय नहीं।
सोंच ले आय ककरो उहू बेटी तो,
सास ला तब बहू फेर भावय नहीं।
करथे बीमा फसल के बछर दर बछर।
क्लेम पूरा तभो कैसे पावय नहीं।
अजय अमृतांशु
भाटापारा
बहुत बढ़िया
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