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Friday 24 July 2020

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

गजल -दुर्गा शंकर इजारदार

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

धरम अउ जात के झगड़ा फँसा देखत तमासा हे,
मजा ले राजनेता संग मा खावत बतासा  हे।।

हवै तो व्याकरण सम्मत कहानी छंद कविता गा,
सुने  बोले मा तो छत्तिसगढ़ी बड़ निक तो भासा हे।।

विनाशक बन उजाड़त आदमी जंगल पहाड़ी ला,
कहाँ अब चार तेन्दू जाम बमरी पेड़ लासा हे।।

समय हा बाँध डारे हे जकड़ के आदमी मन ला ,
भला रुकथे कहाँ पहुना कहूँ गा रात बासा हे।।

दिखावा के हँसी धरके हँसत हे आज के मनखे,
सही मा मन से वो तो गा हतासा अउ निरासा हे।।

मया कतका करत हँव तोला मैं पूछ मत पगली ,
लिखें हँव जान तोरे नाम देख न बेतहासा हे।।

भरे हे मीठ लबरा मन रहौ गा देख के दुर्गा,
हो जाथे छिन मा तोला अउ बदलते छिन मा मासा हे।।

दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)

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