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Tuesday 7 July 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा

बहर--212 212 212 2

जब ये सावन ह रिमझिम बरसही
धान हा चोभियाही सरसही

देख के लहलहावत फसल ला
सब किसानन के मन हा हरसही

लकठियाही परब पोरा-तीजा
मन कई मइके कोती लरसही

धान हा माथ-अरोही कुॅंवरहा
सुख सरग साफ सॅंउहे दरसही

भैया सुखदेव हन हम शहर मा
मेंढ़ मा बइठे बर मन तरसही

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

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