छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
बहर--212 212 212 2
जब ये सावन ह रिमझिम बरसही
धान हा चोभियाही सरसही
देख के लहलहावत फसल ला
सब किसानन के मन हा हरसही
लकठियाही परब पोरा-तीजा
मन कई मइके कोती लरसही
धान हा माथ-अरोही कुॅंवरहा
सुख सरग साफ सॅंउहे दरसही
भैया सुखदेव हन हम शहर मा
मेंढ़ मा बइठे बर मन तरसही
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
बहर--212 212 212 2
जब ये सावन ह रिमझिम बरसही
धान हा चोभियाही सरसही
देख के लहलहावत फसल ला
सब किसानन के मन हा हरसही
लकठियाही परब पोरा-तीजा
मन कई मइके कोती लरसही
धान हा माथ-अरोही कुॅंवरहा
सुख सरग साफ सॅंउहे दरसही
भैया सुखदेव हन हम शहर मा
मेंढ़ मा बइठे बर मन तरसही
-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
वाह बहुत सुग्घर रचना
ReplyDeleteशुक्रिया सर
Deleteबहुत सुन्दर अहिलेश्वर भाई
ReplyDeleteशुक्रिया सर
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