गजल -दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
साँच काहत हवँव जान ले तँय।
तोर होही भला मान ले तँय।
जे डगर मा बिछाये हे काँटा।
ओ डहर में न जा ठान ले तँय।
सुध लमाये हवच जे गली मा।
छोड़ दूसर गली ध्यान ले तँय।
जब पता हे बहुत हे बुराई।
जिंदगी ला तनिक छान ले तँय।
कोन तोला जलाही पता का।
हे समे दर अपन खान ले तँय।
पेंड़ जम्मो कटागे शहर के।
छाँव खातिर छता तान ले तँय।
हे भराये बहुत हे खजाना।
देन आये त ओ दान ले तँय।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जू आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
साँच काहत हवँव जान ले तँय।
तोर होही भला मान ले तँय।
जे डगर मा बिछाये हे काँटा।
ओ डहर में न जा ठान ले तँय।
सुध लमाये हवच जे गली मा।
छोड़ दूसर गली ध्यान ले तँय।
जब पता हे बहुत हे बुराई।
जिंदगी ला तनिक छान ले तँय।
कोन तोला जलाही पता का।
हे समे दर अपन खान ले तँय।
पेंड़ जम्मो कटागे शहर के।
छाँव खातिर छता तान ले तँय।
हे भराये बहुत हे खजाना।
देन आये त ओ दान ले तँय।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
सुग्घर
ReplyDeleteधन्यवाद
ReplyDelete