गजल -दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
बंद मुट्ठी हवय खोलबे झन।
देख फोकट के तँय बोलबे झन।
देह हाड़ा बचाये हे दारू।
बस हवा के चले डोलबे झन।
ज्ञान के बात मोला न आवय।
शब्द ला मोर तँय तोलबे झन।
आज कल बम हे गोटी सरीखे।
तँय चना जान के फोलबे झन।
तेज तर्रार हे तोर भौजी।
मान सिधवी समझ ठोलबे झन।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
बंद मुट्ठी हवय खोलबे झन।
देख फोकट के तँय बोलबे झन।
देह हाड़ा बचाये हे दारू।
बस हवा के चले डोलबे झन।
ज्ञान के बात मोला न आवय।
शब्द ला मोर तँय तोलबे झन।
आज कल बम हे गोटी सरीखे।
तँय चना जान के फोलबे झन।
तेज तर्रार हे तोर भौजी।
मान सिधवी समझ ठोलबे झन।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहुत बहुत धन्यवाद वर्मा जी
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