मुकम्मल गजल -मनीराम साहू, मितान
बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222
भले हाबय निचट अड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
किसनहा देह हे हड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
करत रइथे सदा सेवा हवय ले भार माटी के,
नँगरिहा पूत वो गड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
उठय नित वो बिहनिया ले रखय जी खाँध मा नाँगर,
चलय धर बाट खड़बड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
दरर जाथे बुता तक हा कमाथे घाम पानी मा,
हिचकथे जाड़ बन जड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
कमावत कोइला परगे मुँहू मा हे परे झाँई,
लहुटगे हाथ रच्चड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
हवय वो भूख के बैरी पहाथे दिन गरीबी मा,
सुनत भासन निचट सड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
कमाथें एकरे ओखी हवयँ जे ऊँच मा बइठे,
बना के पाग सड़मड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
लिखत हाबय गजल मा जी मनी जे बात सिरतो हे,
करय नइ गोठ ला कड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
मनीराम साहू मितान
बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222
भले हाबय निचट अड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
किसनहा देह हे हड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
करत रइथे सदा सेवा हवय ले भार माटी के,
नँगरिहा पूत वो गड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
उठय नित वो बिहनिया ले रखय जी खाँध मा नाँगर,
चलय धर बाट खड़बड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
दरर जाथे बुता तक हा कमाथे घाम पानी मा,
हिचकथे जाड़ बन जड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
कमावत कोइला परगे मुँहू मा हे परे झाँई,
लहुटगे हाथ रच्चड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
हवय वो भूख के बैरी पहाथे दिन गरीबी मा,
सुनत भासन निचट सड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
कमाथें एकरे ओखी हवयँ जे ऊँच मा बइठे,
बना के पाग सड़मड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
लिखत हाबय गजल मा जी मनी जे बात सिरतो हे,
करय नइ गोठ ला कड़हा अबड़ हाबय मयारू जी।
मनीराम साहू मितान
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