ग़ज़ल
बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहजजु आख़िर
फाइलुन फ़ाइलुन फाइलुन फ़ा
212 212 212 2
छोड़ के गाँव जाबे कहाँ रे
कोरा दाई के पाबे कहाँ रे
हाँस के रोज चुपचाप सहिले
कोन ला दुख बताबे कहाँ रे
चार दिन बर मिले जिंदगानी
का पता फिर उड़ाबे कहाँ रे
घपटे अँधियार चारों मुड़ा हे
देख दीया जलाबे कहाँ रे
कंस शकुनी के हावय जमाना
न्याय बर गोहराबे कहाँ रे
बस अपनआप मा हे मगन सब
गोठि दिल के सुनाबे कहाँ रे
सोय राजा इहाँ संग परजा
'ज्ञानु' कतका उठाबे कहाँ रे
ज्ञानु
बहरे मुतकारिक मुसम्मन अहजजु आख़िर
फाइलुन फ़ाइलुन फाइलुन फ़ा
212 212 212 2
छोड़ के गाँव जाबे कहाँ रे
कोरा दाई के पाबे कहाँ रे
हाँस के रोज चुपचाप सहिले
कोन ला दुख बताबे कहाँ रे
चार दिन बर मिले जिंदगानी
का पता फिर उड़ाबे कहाँ रे
घपटे अँधियार चारों मुड़ा हे
देख दीया जलाबे कहाँ रे
कंस शकुनी के हावय जमाना
न्याय बर गोहराबे कहाँ रे
बस अपनआप मा हे मगन सब
गोठि दिल के सुनाबे कहाँ रे
सोय राजा इहाँ संग परजा
'ज्ञानु' कतका उठाबे कहाँ रे
ज्ञानु
बहुत बहुत बधाई
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