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Friday 24 July 2020

गजल मनीराम साहू मितान

गजल मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम 
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222 1222

कहे ले वो नटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।
बढ़ा के पग हटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

कथे सिरतो बना देहूँ बने कस तोर कागज ला,
बड़े घुस ले पटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

पुजावत वो रहिस आगू नँगत ओकर रहिस महिमा,
दिनोदिन अब घटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

रहिस मिलके सबो ले वो हवय कुरसी मिले जब ले,
कपट छल ले सँटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

सुवारथ मा हवय बूड़े रथे दिनरात लुड़हारत,
मया देखा जटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

हवय सब नाँव मा ओकर मरय कब डोकरी दाई,
बहू बेटा रटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

दवाई ला रहिस देये मिटा जाही मुड़ी पीरा,
लगावत सर फटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

हरन हम पाठ के भाई लहू ये लाल परछो हे,
तभो मनखे बँटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

भले कइथे मनी हर जी बढ़ाबो मान माटी के,
समे आये कटत हाबय करवँ कइसे भरोसा मैं।

मनीराम साहू मितान

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