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Wednesday 22 July 2020

गजल- दिलीप वर्मा

गजल- दिलीप वर्मा
बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन मुफाइलुन
1222 1222 1222 1222

मटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।
छटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

सुने हँव प्रेम के बंधन बड़ा मजबूत होवत हे।
झटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

लगे करफ्यू बसो हे बंद गाड़ी तक दिखत नइ हे।
लटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

मया मा ताज बनवा के दिये जे मँय रहँव वोला।
पटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

बने ओ शेरनी जइसे समझ के मेमना मोला।
हटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

दुसर के बात मा आके समझ नइ पाय सच का हे।
भटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

चटक पानी असन मँय केश मा राहत रहे हँव जी।
फटक के चल दइस ओहा, बता मँय का करँव संगी।

रचनाकार- दिलोप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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