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Friday 17 July 2020

गजल -मनीराम साहू

गजल  -मनीराम साहू

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

भगाबो दूर अँधियारी चलव मिलके परन करबो।
रहय बस चक्क उजियारी चलव मिलके परन करबो।

भला हाबय इही मा जी सफाई सब रखिन सँग मा,
रखन नइ तीर बीमारी चलव मिलके परन करबो।

अलग हाबयँ अँगुरिया सब बँधे ताकत बनाथें जी,
बनिन मुटका पटो तारी चलव मिलके परन करबो।

भले हे लाख अवगुन हा हवय गुन एक धरलिन हम,
करन नइ फोकटे चारी चलव मिलके परन करबो।

रहय जे एक के बोझा बनय जी चार के लवठी,
करिन हम काम सहकारी चलव मिलके परन करबो।

रखे लोहा सँचर जाथे तुरत गा रोग मुरचा हा,
गुनत ये बात सँगवारी चलव मिलके परन करबो।

कुछू तो बाँचही पइसा उपजही साग भाजी जब,
लगाबो छोटकुन बारी चलव मिलके परन करबो।

जिनिस जे फोसवा होथे उड़ा जाथे गरेरा मा,
सदा मिल हम रहिन भारी चलव मिलके परन करबो।

हवन हम खात जेकर ला पले हँन खेल कोरा मा,
करत रहिबोन रखवारी चलव मिलके परन करबो।

मनीराम साहू मितान

1 comment:

  1. बहुत बहुत धन्यवाद वर्मा जी ठौर दे बर

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