गजल -दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
मान जा बात रे आज झन जा।
हो गये रात रे आज झन जा।
लोग देखत रथे कब बिछलही।
होय बरसात रे आज झन जा।
साँप बिच्छू असन आदमी हे।
कर दही घात रे आज झन जा।
दाँव खेले हवय आज बैरी।
घुघवा नरियात रे आज झन जा।
जाल फेंके मया मा फँसाये।
ओ गजब ढात रे आज झन जा।
रात होगे हवय देख भारी।
नइ मिलय भात रे आज झन जा।
बढ़ जथे रात ताकत उखर जी।
खा जबे मात रे आज झन जा।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़जु आखिर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
मान जा बात रे आज झन जा।
हो गये रात रे आज झन जा।
लोग देखत रथे कब बिछलही।
होय बरसात रे आज झन जा।
साँप बिच्छू असन आदमी हे।
कर दही घात रे आज झन जा।
दाँव खेले हवय आज बैरी।
घुघवा नरियात रे आज झन जा।
जाल फेंके मया मा फँसाये।
ओ गजब ढात रे आज झन जा।
रात होगे हवय देख भारी।
नइ मिलय भात रे आज झन जा।
बढ़ जथे रात ताकत उखर जी।
खा जबे मात रे आज झन जा।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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