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Friday 31 July 2020

गजल विविध बहर में

गजल विविध बहर में- साझा गजल

गज़ल - अजय अमृतांशु

212   212   212   212

पाले हे झेल के दुख बतावय नहीं।
पीरा दाई ददा हा दिखावय नहीं।

किस्सा दादी के संगी नँदागे हवय।
लोरी गा के कहूँ अब सुलावय नहीं।

टूटगे मोर कनिहा कमावत हँवव।
लक्ष्मी जाथे कहाँ घर मा आवय नहीं।

खेत गहना धराये हवय भाई गा।
कर्जा लदकाय भारी छुटावय नहीं।

मेंहदी हाथ दूनों रचाये हवय।
बेटी दाहिज बिना अब बिहावय नहीं।

सोंच ले आय ककरो उहू बेटी तो,
सास ला तब बहू फेर भावय नहीं।

करथे बीमा फसल के बछर दर बछर।  
क्लेम पूरा तभो कैसे पावय नहीं।

अजय अमृतांशु, भाटापारा
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ग़ज़ल--आशा देशमुख*

*212  212  212  212*

राज कतको छुपाये  हवय डायरी
बात मन के लिखाये हवय डायरी।

भ्रष्ट सत्ता कहाँ कारनामा करे
पृष्ठ भीतर दबाये हवय डायरी।

गीत माला गुहे शब्द मोती बने
फूल पत्ता सजाये हवय डायरी।

प्रेम किस्सा कहानी अमर हे सदा
ठौर सब बर बनाये हवय डायरी।

पूछ ले कोन सन मा करे काम हे
वार तिथि दिन बताये हवय डायरी।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 

1222 1222 1222 1222

उदासी छाय हे सब मा, लगे जस हार होगे हे।
फँसे हावय सबो घर मा, लगे मझधार होगे हे।    

बनावत हे बड़े पुलिया,रुके पर काम बरसों ले।
खटाई मा परे हे काम, पइसा पार होगे हे। 

नशा छोंड़व कहे सब लोग, पर मानत कहाँ हावय।
बिहनिया ले चले दारू,घरो घर बार होगे हे। 

रहे भाँठा बहुत हर गाँव, खेलन खेल हम संगी।
सबो ला घेर धनहा कस बना अब खार होगे हे।  

कभू डंका बजय जग मा, कहावय सोन के चिड़िया।
हमर ये देश हा सिरतोन अब बीमार होगे हे।

न दाढ़ी मूँछ आये हे न टूटे दाँत बचपन के।
मुड़ी मा बांध के पगड़ी बड़ा सरदार होगे हे। 

उमर कच्चा हवय नइ जान पावय का हरे दुनिया।
बिहाये बर करे जल्दी, का बेटी भार होगे हे। 

बबा बइठे मुहाटी डोकरी दाई फुलाये मुँह।
मया के रंग छलके ले लगे तकरार होगे हे। 

बने घर नाँव के जइसे, करोना हे महा सागर।
लगा के मास्क ला निकलव इही पतवार होगे हे। 

सिपाही नर्स डॉक्टर अउ सफाई जे इहाँ करथे। 
बचा के जान ये सब के, नवा अवतार होगे हे। 

घरों घर आज मोबाइल हवे टी वी तको संगी। 
सबो देखत रथे दिन रात,आँखी चार होगे हे।  

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी गजल

अरकान-212 212 212 212  

का सही हे बता का गलत आज हे।
पात मिटकाय हे जड़ हलत आज हे।1

काखरो घर किसन अब कहाँ अवतरै।
कंस गाँवे गली मा पलत आज हे।।2

दुःख भोगत हवै रोज दाई ददा।
काय बेटा बियाये खलत आज हे।3

झूठ के बोलबाला सबे तीर मा।
हार थक सँच हथेली मलत आज हे।4

कोट के काम का मैं बतावौं कका।
उम्र भर देख पेशी चलत आज हे।5

धान बाढ़े नही ज्ञान बाढ़े नही।
बेत मा फूल अउ फल फलत आज हे।6

दुःख के रात कारी हा कइसे छँटै।
बिन उगे सुख सुरुज हा ढलत आज हे।7

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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 सुखदेव: छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल

212 212 212 2

वक्त हा तोला समझात का हे
तोर भेजा म हामात का हे

जॉंचले दिल लगाये के पहिली 
तोर घर- बार औकात का हे

तोला लेगत हवॅंव तोर मइके
तॅंय रिसाये हवस बात का हे

देख तो भोग छप्पन खवइया
तोर बनिहार हा खात का हे

काखरो ले मया हो जही ता
पूछबे झन सगा जात का हे

भींजथौं घण्टों सावन झड़ी मा
ए फुहारा के बरसात का हे

जीत पाइस नहीं दल बदल के
अब समझगे भीतर घात का हे

निज ऊंचाई ले जादा उचक झन
देख ले हाथ अमरात का हे

फूलमाला म सुखदेव जा झन
जस ले जादा ग ममहात का हे

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'
  गोरखपुर,कबीरधाम

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अरकान 2122 2122 212
आज फागुनवाँ पवन के सोर हे
आमा हा मउँरे सजे घनघोर हे ।

बरछा मा पतझर हिलोरे रूख ला
चार कसही हा फरे लटलोर हे।

घूम फिर आथे बसंती हर बरस
लागथे बंधे मया के डोर हे।

बेल, बारी मा सजे पाके दिखय 
ओकरे सब मा चले अब जोर हे।

होत पतझर मा उड़ाथे पान हा
तब ले परसा हा खड़े सिरमोर हे।

संग मा नाचत रथे जी कोयली 
ये मया के बंधना के छोर हे

सादा सादा कपसा के पोनी उड़े 
लागे जइसे पाती देवत भोर हे

मिलन मलरिहा
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 ग़ज़ल
बहर-221-1221-1221-122

देखव तो कहाँ आदमी इंसान बने हे
ईमान सबो बेचके बइमान बने हे

नेकी ला सबो छोड़ के हथियार चलावय
ओखर ले कहाँ जीतबे शैतान बने हे

फोकट मा उदाली मारे फोकट के सियानी
ढ़ोंगी ले ठगाके गा सब अंजान बने हे

करना हे हकन के जी सबो काम इहाँ के
महिनत हा सबो मनखे के वरदान बने हे

तैं "मौज" बने देख ले आँखी ला उघारे
माँ-बाप इहाँ जान ले भगवान बने हे

द्वारिका प्रसाल लहरे"मौज"
कवर्धा छत्तीसगढ़

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छत्तीसगढ़ी गजल :- जगदीश "हीरा" साहू
2122 2122 212

*मया मा दगा*

तोर सुरता संग लेजा तोर वो।
छेदथे रहि रहि करेजा मोर वो।।

ये भरोसा नाम के बस जान ले।
दे दगा मोला मया ला जोर वो।।1।।

टूटगे सपना जिए के संग मा।
छोड़के तैं मोर दिल ला टोर वो।।2।।

आस नइहे अब जिए जान ले।
मार दे मोला जहर दे घोर वो।।3।।

का बतावँव मोर मन के बात ला।
लूटगे अँगना गली अउ खोर वो।।4।।

मार डारे बोज के मजधार मा।
काटथे लकड़ी ल जइसे गोर वो।।5।।

बोलथे होथे मया हा शांत ना।
टूटथे भारी करे तब शोर वो।।6।।

2 1 22    2 1 22  21  2

जगदीश "हीरा" साहू
कड़ार (भाटापारा)
छत्तीसगढ़
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 गज़ल (छत्तीसगढ़ी)
बहर : 221 1222  221  1222
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नइ पेड़ इहाँ  जंगल मा  छाँव कहाँ पाबे।
दर्रात  सबो  भुइँया मा ठाँव  कहाँ पाबे।।

हर खेत पटावत हे अउ आज शहर बनगे,
दइहान  नँदागे  जी अब  गाँव कहाँ पाबे। 

वो  ज्ञान  बहाइस  गंगा  संत महा ज्ञानी,
रसखान-कबीरा-तुलसी नाँव कहाँ पाबे।

वो गाँव बने  लागय  परदेश नहीं भावय,
मिलजाय मया चिनहा कस घाँव कहाँ पाबे।

नइ भाय *विनायक* अब बदलाव सबो होगे,
अब खेल कबड्डी-खोखो दाँव कहाँ पाबे।
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गज़लकार:-
बोधन राम निषादराज"विनायक"
सहसपुर लोहारा,कबीरधाम(छ.ग.)
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 इजारदार: छत्तीसगढ़ी गजल-
1222 1222 1222 1222

दरक गे हे सबो नाता मया धर के बने तुन ले ,
अपन माने के पहिली तँय अलग गोंटी बने टुन ले ।।

तैं सुनके भाग मत पीछू कि ले गे कान ला कौंवा ,
सुने हस कान मा जे बात वो तँय बात ला धुन ले ।।

पढ़ाई अउ लिखाई सँग सिखौना काम कतको हे ,
चढ़ा ढेरा मा आँटी जान अउ खटिया खुरा कुन ले ।।

बिना सोंचे विचारे काम करबे होत पछतावा ,
करे गा काम के पहिली नतीजा बर बने गुन ले ।।

कहाँ काशी कहाँ मथुरा अयोध्या धाम जाबे तँय ,
ददा दाई के सेवा कर सबो गा धाम के पुन ले ।।

खड़े रइही ग नेता हाथ जोड़े सब चुनावी मा ,
करे जो काम जनता के सुनो नेता उही चुन ले ।।

चिता चिंता मा बिंदी के फरक तो मात्र हे दुर्गा ,
करे झन खोखला तन मन उदिम करके बचा घुन ले ।।

गजलकार-दुर्गा शंकर ईजारदार
सारंगढ़ (छत्तीसगढ़)
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 पात्रे जी: छत्तीसगढ़ी गजल- 
212 212 212 212 

मान इज्जत कमा राख ईमान ला।
झन गँवाबे कमाये तैं पहिचान ला।।

फूल जइसे महक खुश्बू सच धरे।
झूठ फाँसी बरोबर लिये जान ला।।

छाँव सब ला मिले प्रेम बिरवा लगा।
गोठ मधुरस घुरे बोल इंसान ला।।

घट दुवारी बसे फेर भटके मनुज।
चर्च मंदिर तलाशे वो भगवान ला।।

पाठ मानवता पढ़ राख इंसानियत।
बाँट ले दीन दुखिया दया दान ला।।

देश सेवा बड़े जइसे माता पिता।
बेटा बनके सच्चा बढ़ा शान ला।।

सुन गजानंद तैं झन भुलाबे कभू।
जन्म भुइँया अपन खेत खलिहान ला।।


गजलकार- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )

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 ग़ज़ल
बहर -फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन 
122 122 122 122

कुँआ बाउली के ग पानी सिरागे।
ननद भौजी के मीठ बानी सिरागे।।

उमर हे अठारा दिखय हाड़ा हाड़ा
नशा मा टुरा के जवानी सिरागे।

कहाँ कोनो जुम्मन कहाँ कोनो अलगू
सुवारथ म आके मितानी सिरागे।

करय दूध के दूध पानी के पानी, 
समारू के सुग्घर सियानी सिरागे ।

सरी खेती बेचागे फैशन म साहिर 
बबा के सँगे सँग किसानी सिरागे ।

शायर -जितेंद्र सुकुमार  'साहिर '
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ग़ज़ल
1222 1222 1222 1222

ग़ज़ब ये दिन उदासी के गजब रतिहा पहावत हे, 
कि मनखे आज मनखे ला छुये बर भी डरावत हे ।

नहीं कोनो लड़ाई है न कोनो झगड़ा माते हे,
त काबर आज घर भीतर ले मनखे घुर घुरावत हे ।

कभू अँगना कभू रंधनी म दाई के चुरे जेवन
अभी चुलहा के रांधे भात ला भौजी लुकावत हे ।

कि टूटत आज हे परिवार कइसे हम बचाबो जी
 मया पीरा कभू सुख दुख ये जिनगी हर बतावत हे।

"शकुन"किस्सा बहुत लंबा हे काला मन के कहिबे तंय
इहाँ अड़बड़ हँसैय्या हे अपन  मन ला  मड़ावत हे ।।

शकुंतला तरार
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ग़ज़ल*
२१२२ २१२२ १२२
रात दिन आलस म बेरा पहाही।
हाथ ले किस्मत वो अपने लुटाही।

जेन जागे तेन सुख जग म पागे,
सब सुते मन पाछु माथा ठठाही।

हाथ खोले जेन सरबस लुटाही,
अउ लुटे ले कोन ओला बचाही।

हे भुलाए आज रस्ता ल सबझन,
सोच झन तँय तोर रस्ता बताही।

जाग के दुनिया ल कुकरा जगाथे।
कोन काली रीत अइसन निभाही।

*पोखन लाल जायसवाल*
*पलारी* ३०/७/२०२०
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कवि बादल: गजल (छत्तीसगढ़ी )

2122 2122 212

मोह माया ले अपन मुख मोड़ के
रेंग दिस पुरखा सबो ला छोड़ के

आज  बेटा हा उराठिल हे कहे 
बाप के हिरदे ल रट ले तोड़ के 

झन भरोसा आन के करबे गड़ी
कर भरोसा हाथ खुद के गोड़ के 

भाग जाहीं उन सबो हुशियार मन
ठीकरा ला तोर मूँड़ी  फोड़ के 

नींद भाँजत हे अजी रखवार हा
चल उठाबो जोर से झंझोड़ के 

पेट भर जी अन्न पानी मिल जही
काय करबे दाँत चाबे जोड़ के 

फेंक देही जेन ला माने अपन
देख "बादल" तोर जर ला कोड़ के

चोवा राम 'बादल'
हथबन्द, छत्तीसगढ़

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बलराम चन्द्राकर जी: *गज़ल*

*(2122  2122  2122  212)*


तयँ मया मा मोर मन ला बाँध डारे जान ले,
अब मया अमरित पिया चाहे करेजा चान ले।

पैरी छम-छम तोर सुन के तार मन के बाजथे,
ये मया हर हे अधूरा तोर बिन पहिचान ले।

हे जमाना मोर बैरी ये मया ला देख के,
साँस मा तयँ गीत बनके रहिबे हरदम ठान ले।

मैं दिवाना तोर गोरी गोठ सुन ले मोर या,
तोर बिन नइ जी सकौं अब मोर चाहे प्राण ले।

प्यार ये 'बलराम' के रइही अमर गोरी सदा,
नइ दगा होवै कभू या हे कसम ईमान ले।


*बलराम चंद्राकर*
*भिलाई छत्तीसगढ़*
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गजल

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