ग़ज़ल-ज्ञानु
बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222×4
कटावत रोज रुखराई बचाही कोन सँगवारी
मिलय फल फूल अउ छइहाँ लगाही कोन सँगवारी
संभल के खुद चले परथे इहाँ सबो सुनलव
भटक जाहू कहू रसता दिखाही कोन सँगवारी
तहू हस मस्त अपने मा महूँ हँव तब मितानी ला
सुदामा कृष्ण जस सिरतों निभाही कोन सँगवारी
बनाथे काम अफसर अउ ये नेता मन सदा अपने
सुवारथ के लगे चश्मा हटाही कोन सँगवारी
मया के आग भभकत हे जिया तरसे मिले खातिर
मयारू बिन लगा छतिया बुझाही कोन सँगवारी
दिखावत जेब खाली ला अपन पूछत हवय ओहा
बताऔ आज दारू ला पियाही कोन सँगवारी
भले बन जा बड़े तँय आदमी पइसा कमा कतको
ददा दाई सही तोला खवाही कोन सँगवारी
धरय नइ 'ज्ञानु' लइका आज के नाँगर के मुठिया ला
कभू मौका परे धनहा मताही कोन सँगवारी
ज्ञानु
बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन मुफाईलुन
1222×4
कटावत रोज रुखराई बचाही कोन सँगवारी
मिलय फल फूल अउ छइहाँ लगाही कोन सँगवारी
संभल के खुद चले परथे इहाँ सबो सुनलव
भटक जाहू कहू रसता दिखाही कोन सँगवारी
तहू हस मस्त अपने मा महूँ हँव तब मितानी ला
सुदामा कृष्ण जस सिरतों निभाही कोन सँगवारी
बनाथे काम अफसर अउ ये नेता मन सदा अपने
सुवारथ के लगे चश्मा हटाही कोन सँगवारी
मया के आग भभकत हे जिया तरसे मिले खातिर
मयारू बिन लगा छतिया बुझाही कोन सँगवारी
दिखावत जेब खाली ला अपन पूछत हवय ओहा
बताऔ आज दारू ला पियाही कोन सँगवारी
भले बन जा बड़े तँय आदमी पइसा कमा कतको
ददा दाई सही तोला खवाही कोन सँगवारी
धरय नइ 'ज्ञानु' लइका आज के नाँगर के मुठिया ला
कभू मौका परे धनहा मताही कोन सँगवारी
ज्ञानु
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