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Friday 24 July 2020

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212  212  212  212

आय हे साँप धरके सपेरा इहाँ
मौत जिनगी लगावत हे फेरा इहाँ।

हाड़ काँपे हवा संग पानी गिरे
जोर के आय धूका गरेरा इहाँ।

घर बनाये नवा तो डिजाइन (नमूना)रखे
पर दिखत नइहे गाला पठेरा इहाँ।

खेत बारी कहँय रोज मिहनत करव
लहलहावत  हवय गा लमेरा इहाँ।

घर मुहाटी गली रोज दीया बरे
राज मन मा करत हे अँधेरा इहाँ।

मान सुम्मत  मया के लगन छूटगे
अब दिखे लोभ स्वारथ के डेरा इहाँ।

अब कहाँ जाय आशा कती ठौर हे
बंद खिड़की महल काँच घेरा इहाँ।

आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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