गजल -दिलीप वर्मा
बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फाइलुन फाइलुन फाइलुन
212 212 212 212
बन मँदारी नचावत रथे रात दिन।
घोर कातिल बचावत रथे रात दिन।
हे सुरक्षा म तैनात पलटन इहाँ।
पेंड़ लाखों खचावत रथे रात दिन।
कइसे खुसरे हे आतंकवादी बता।
हर जगा जब जचावत रथे रात दिन।
सब कुकुर बाँध के जेल मा ठूँस दव।
शोर भारी मचावत रथे रात दिन।
जे हदरहा रथे नइ मरय लाज जी।
जाने कइसे पचावत रथे रात दिन।
रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
धन्यवाद
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