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Sunday, 5 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर*

*फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा*

*212  212  212  2*

धन रतन वाले सोये हवे का।
हाथ खाली वो खोये हवे का।1

नूनछुर होय फल मेहनत के।
तन पछीना पलोये हवे का।2

उन्ना कोठी हे गोदाम छलके।
धान बयपारी बोये हवे का।3

माँगे मनमोहना के मया सब।
मन मगन मीरा होये हवे का।4

झूठ के मीत ममता मया हा।
रो रो अँचरा भिंगोये हवे का।5

पस्त दिखथे रखइया फसल के।
हरहा बइला पदोये हवे का।6

जे कहे सब ला राखौ  सफाई।
भात खा हाथ धोये हवे का।7

बात इंसानियत के रटे जौन।
आन बर रोटी पोये हवे का।8

बीच मँजधार होके अकेल्ला।
राधा कस कोई रोये हवे का।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को,कोरबा(छग)

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