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Monday, 27 July 2020

ग़ज़ल--आशा देशमुख

ग़ज़ल--आशा देशमुख

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212  212  212  212

भाग जा रे करोना कहूँ मेर तँय
आय काबर लहुट के इहाँ फेर तँय।

बस पूछी ला हलावत रथस रे कुकुर
आज कइसे गली मा बने शेर तँय।

मोर भाई सिपाही ग झन काँपबे
मार बैरी लगा लाश के ढेर तँय।

ये लुकाये हवय तेल बीजा तरी 
जोश जाँगर लगा के बने पेर तँय।

बाट देखत मयारू पहर बीतगे
आज काबर लगाए अबड़ बेर तँय।

भूख कइसे मिटाही किलो पाव मा
खेत कोठी लबालब भरे हेर तँय।

हे विधाता जगत मा बढ़ादे मया 
रोज आशा लगा जोर के टेर तँय।


आशा देशमुख
एनटीपीसी जमनीपाली कोरबा

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