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Thursday 23 July 2020

गजल -मनीराम साहू मितान

गजल -मनीराम साहू मितान

बहरे हजज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222

लिखवँ कइसे गजल मैं हा बहर मोला पता नइहे।
भरे सब भाव हिरदे के दहर मोला पता नइहे।

हवय मन आस एके जी दरस बस हो जतिस ओकर,
रथे जाके कहाँ ओकर शहर मोला पता नइहे।

हवय पीरा सतावत जी सँचर के मोर अंतस मा,
पिया के मार दवँ मै पर जहर मोला पता नइहे।

सुवारथ हे लगत हाबय करू नइ मीठ बोली हे,
उठत कतका मया जल के लहर मोला पता नइहे।

कथे दिल गा सुघर तैं हा मिलन के गीत सावन मा,
बने सुर ताल लय अउ धुन ठहर मोला पता नइहे।

लगावत फेर आफिस के खियागे मोर पनही हा,
कती अब जावँ उखरा मैं डहर मोला पता नइहे।

सुखागे खेत बरसा बिन छुटे हे बाँध के पानी,
चलत राहय बने कस वो नहर मोला पता नइहे।

सहत दुख घाम जिनगी मा सहज परगे हवय घाँठा,
कभू सुख लाय हे एको पहर मोला पता नइहे।

बगरगे हे मनी दुनिया पदोवत हे महामारी,
चलत हाबय बने सब तव कहर मोला पता नइहे।

मनीराम साहू मितान

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