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Saturday, 25 July 2020

गजल मनीराम साहू मितान

गजल मनीराम साहू मितान

बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम 
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन 
212  212  212  212  

रोज दिन घाम मा वो खँटावत रथे।
जिन्दगानी के दिन ला घटावत रथे।

रोज रइथे दँते ताश मा कोढ़िया,
देख पर धन खड़े पटपटावत रथे।

दिन बितत हे सरी चापलूसी करत,
तीर बड़का के बड़ मटमटावत रथे।

सब हवयँ भोकवा मैं सुजानिक कहत
बीच सबके अलग वो छँटावत रथे।

राम नित हे जपत फेर खँइता हवय,
दाँत सब बर अबड़ कटकटावत रथे।

मान पाथे उही अउ पुजाथे घलो,
रात दिन जे दुसर दुख हटावत रथे।

नइ मिलय जी जघा हा नरक मा घलो,
बाप माँ बर मुरुख फटफटावत रथे।

जान ले एक दिन जाल फँसही खुदे,
पाठ हिन्सा पढ़ा जे रटावत रथे।

बाँट के तैं मया जोर सब ला मनी,
छल कपट मा मनुज सब बँटावत रथे।

मनीराम साहू मितान

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