Total Pageviews

Wednesday, 22 July 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222

बिना खाये उदर आगी, बता कइसे बुझाही जी।
विपत नाचत रही सिर मा, भला का नींद आही जी।

लगे सावन घलो बैसाख, आगी कस धरा हे तात।
कटागे रुख गँवागे सुख, मनुष अब जर भुँजाही जी।

बिगाड़े घर घलो ला ये, बिगाड़े पर घलो ला ये।
नसा हा नास के जड़ ए, खुशी धन तन सिराही जी।

ददा दाई ला धुत्कारे, खुशी सुख सत मया बारे।
सुने नइ बात ला बेटा, कहाँ जाके झपाही जी।

गरभ मा राख के नौ माह, झेलिस दुख गजब दाई।
निकम्मा पूत हा होवय, ता छाती नइ ठठाही जी।

भलाई के जमाना गय, करे पापी धरम के छय।
बुराई हा जगत मा, एक दिन लाही तबाही जी।

चले चरचा गुमानी के, दबे गुण ज्ञान  ग्यानी के।
धँधाये जेल मा सत ता, बुराई नइ हमाही जी।

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...