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Monday, 20 July 2020

गजल -दिलीप वर्मा

गजल -दिलीप वर्मा

बहरे हज्ज़ मुसम्मन सालिम
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1222 1222 1222 1222 

बनाये हे बने कानून पर सब छूट जावत हे।
बने कानून के रखवार मन जब घूँस खावत हे। 

धरे रहिबे लुका कतकोन गठरी बाँध तँय पइसा। 
कुकुर मन सूँघ के आवय तहाँ सब ला नँगावत हे

सबो हर बंद हे जब ले करोना आय बीमारी।
तभो गुरुजन उठा बीड़ा मुबाइल मा पढ़ावत हे।

कभू झन आँकबे कम पेट हाथी कस रखे नेता।
रहे चारा सड़क पुलिया सबो ला खा पचावत हे।

रहय जेखर करा पइसा रखे वो जेब मा कानून।
करे कतकोन घोटाला कहाँ वो हर धँधावत हे।

ददा कंजूस बन पइसा सकेले हे बहुत भारी।
उदाली मार लइका हर सबो धन ला उड़ावत हे।

विदेसी मेम लाने हे बिहा करके हमर टूरा। 
बिहिनिया साँझ रतिहा रोज के नखरा उठावत हे।

रचनाकार- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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