गजल -मनीराम साहू
बहरे मुतदारीम मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
बात मन के कभू वो बतावय नही।
काय हे मन कुछू गोठियावय नही।
चेत हाबय कहाँ आज ला काल के,
बस उजारत हवय रुख लगावय नही।
नून डारत हवय जे जघा हे जरे,
तापथे आँच आगी बुझावय नही।
छोट कपड़ा पहिर हे घुमत हाट मा,
गोठ औखर करत वो लजावय नही।
जानथे सच हवय वो कहत हे बने,
साथ देहवँ कथे तीर आवय नही।
हे दिखे मा सुघर चाल कीरा परे,
मंद पीथे अबड़ भात खावय नही।
खाय ढिल्ला घुमे वो हवय रात दिन,
जान मसमोट बछवा नथावय नही।
हे मनी पीर सिरतो समुन्दर असन,
तोर देये दरद हा जनावय नही।
मनीराम साहू मितान
सुग्घर
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