गजल-दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिअ मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाइलु फ़ाइलून
221 2121 1221 212
भइसा सहीं ये देह ला कइसे करँव बता
घर नानकन लगत हवे काहाँ टरँव बता।
खा खाके मोटा गे हवय कतकोन मन इहाँ।
निकलय उँखर ले तेल हा कतका छरँव बता।
भगवान दे हवय बने खपरा ल फोर के।
भारी हवय समान ह काहाँ धरँव बता।
ये टेटका असन ह जी डरव्हाय रात दिन।
हाथी असन ये देह मा कइसे डरँव बता।
अइसन जिनिस बता मरे ले जाय संग मा।
बड़का हे मोर पेट ह काला भरँव बता।
नदिया तको बँधा जही बइठे ले मोर जी।
जब आ जहूँ मैं काम त काबर मरँव बता।
अब पूछथे दिलीप ह दर्पण ल देख के।
मनखे हरँव की मँय ह जी दानव हरँव बता।
रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
बहुत बहुत धन्यवाद वर्मा जी
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