Total Pageviews

Tuesday 8 September 2020

ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

 ग़ज़ल- ज्ञानुदास मानिकपुरी

बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


भूले अपन अपन म हवय आज आदमी

स्वारथ भरे सदा ही करै काज आदमी


भाई बताबे सोच समझ के ग कोनो ला

मौका परे म खोल दिही राज आदमी


हावय इहाँ ग कतको बिगाड़े बनत बुता

पेरत वो बनके खाद कभू खाज आदमी


बस आँय बाँय काम इहाँ करथे देखले

आवय न चाल ले ये अपन बाज आदमी


रहिथे भले टुरा ह इहाँ 'ज्ञानु' लेड़गा

बाई रहय वो सोच थे मुमताज आदमी


ज्ञानु

No comments:

Post a Comment

गजल

 गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...