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Friday, 4 September 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121  1221 212

माछी सही मरी हे त हाथी गिधान हे।
खेती करे दलाल अधर मा किसान हे।1

काखर कलाई मा बता लगही ग हथकड़ी।
रखवार चोर मिलगे दुनो अब मितान हे।2

जीते जियत अँड़े लड़े सबदिन रटत रतन।
जाना हवै इहाँ ले त का के गुमान हे।3

मिलजुल बिताय जिंदगी सब जानवर घलो।
अपने अपन मनुष लड़े तब का सुजान हे।4

मरहम मया पिरीत के मनखे धरे रहव।
बोली हरे खड़ग त समझ हा मियान हे।5

चुरवा अकन भले रहा प्यासा के काम आ।
खारा हवै समुंद त बिरथा भरान हे।6

दुरिहाव झन निसेनी उपर मा चढ़े के बाद।
जेखर करा सियान हे ते कर बिहान हे।7

जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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