छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121 1221 212
माछी सही मरी हे त हाथी गिधान हे।
खेती करे दलाल अधर मा किसान हे।1
काखर कलाई मा बता लगही ग हथकड़ी।
रखवार चोर मिलगे दुनो अब मितान हे।2
जीते जियत अँड़े लड़े सबदिन रटत रतन।
जाना हवै इहाँ ले त का के गुमान हे।3
मिलजुल बिताय जिंदगी सब जानवर घलो।
अपने अपन मनुष लड़े तब का सुजान हे।4
मरहम मया पिरीत के मनखे धरे रहव।
बोली हरे खड़ग त समझ हा मियान हे।5
चुरवा अकन भले रहा प्यासा के काम आ।
खारा हवै समुंद त बिरथा भरान हे।6
दुरिहाव झन निसेनी उपर मा चढ़े के बाद।
जेखर करा सियान हे ते कर बिहान हे।7
जीतेंद्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Friday, 4 September 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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गजल
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