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Friday 4 September 2020

गजल- दिलीप कुमार वर्मा

 गजल- दिलीप कुमार वर्मा 
बहरे मज़ारिब मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़ 
मफ़ऊल  फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212  

लकड़ी तको नराज हे प्लास्टिक के आय ले। 
चुलहा तको नराज सिलिन्डर जलाय ले। 

रखथे लुका के खाय के सामान ला तको।
कहिथे सिरा जही सबो ह तोर खाय ले। 

बाँटे तको सके नही  पोटार के रखे।
का काम अइसे ज्ञान के मिहनत म पाय ले। 

गरजे चमक चमक के ओ डरव्हा के चल दिए। 
बरसे बिना का काम के बादर के छाय ले। 

लइका बियाय चार त परिवार बाढ़ गे।
पूरय नही अनाज ह कतको कमाय ले। 

ढुलमुल विचार के कभू बिसवास झन करव।
पेंदी बिना लुढ़क जथे लोटा मढ़ाय ले। 

कतको करे दिलीप बुराई भले इहाँ।
कहिथे सबो बने बने दुनिया ले जाय ले। 

रचनाकार-- दिलीप कुमार वर्मा 
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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