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Tuesday 8 September 2020

ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान

 ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान


बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन

221 2121 1221 212


कइसे करय किसान ह पानी भरे हवय।

आगे सबो बुड़ान म खेती सरे हवय।


नॅगते चढ़त बजार हे पूरा नदी असन,

आतंक देख दाम के मनखे डरे हवय।


मरगे कका ह काल ग पानी दवा बिना,

आइस नहीं ग काम म धन घर भरे हवय।


बिन पाय काम देख जुवानी सबे खपै,

बेरोजगार राज म अबड़े मरे हवय।


कहना‌ तहूॅ ह मान ले माया तियाग दे,

जे हर जपे हे राम ल सिरतो तरे हवय।


दिन भर नॅगत कमाय पछीना बहा बहा,

बाॅटा कहाॅ गरीब के सुख हर परे हवय।


किम्मत कभू मितान के होवय नही सगा,

मनखे कहूॅ ग जेब‌ म रुपिया धरे हवय।


- मनीराम साहू मितान

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