ग़ज़ल- मनीराम साहू मितान
बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईन फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
पुरखा हमर लगाय हे रख तैं सॅवार के।
रुखवा सुघर जगाय हे रख तैं सॅवार के।
कोनो मरय न प्यास मा गुनके सियान हा,
तरिया कुआॅ खनाय हे रख तैं सॅवार के।
अॅउटा लहू किसान हा नॅगते कमाय जी,
अन ला सुघर उगाय हे रख तैं सॅवार के।
हाबय अबड़ अमोल जी जग हित तहूॅ बॅचा,
बिन जल अमाय बाय हे रख तैं सॅवार के।
स्वारथ अपन सिधोय गा ओखी बिकास के,
महुरा पवन मा आय हे रख तैं सॅवार के।
धरती मा मोर राम के मैं कीच हे अबड़,
मनखे सबो सनाय हे रख तैं सॅवार के।
बिनती करय मितान हा करले जतन सखा,
प्यासे भुखाय गाय हे रख तैं सॅवार के।
- मनीराम साहू मितान
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