गजल- इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
*221 2121 1221 212*
कहिगे सुजान मन बड़े गुरु संत ज्ञान हे।
ना छोटे ना बड़े सबो मनखे समान हे।।
सबके शरीर एक बने हाड़ मांस ले।
का भेद फेर हे बता अलगे निशान हे।।
धरके गरब गुमान चले जेन भी इँहा।
मुँह भार एक दिन उही गिरथे उतान हे।।
जाना सबो हे छोड़ इँहा तोर मोर का।
फिर भी बने फिरे सबो मनखे नदान हे।।
जग मा बटोर बाँट गजानंद तँय मया।
चल ले समय धरे सदा हर पल महान हे।।
इंजी. गजानंद पात्रे "सत्यबोध"
बिलासपुर ( छत्तीसगढ़ )
बहुतेच सुग्घर गजल।
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