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Wednesday, 2 September 2020

गजल-दिलीप कुमार वर्मा

 गजल-दिलीप कुमार वर्मा 

बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक्सूर

 फ़ऊलुन    फ़ऊलुन  फ़ऊलुन फ़अल

122  122  122  12 


बरा रोज खाये के दिन आय हे। 

ददा हर बरा ला अबड़ भाय हे। 


पितर बैसकी आज बनही बरा। 

फिलोये रहे दार पिसवाय हे। 


सुने हँव बबा आय कउँवा बने। 

निकाले बरा चाव से खाय हे। 


भले खाय झन खाय कउँवा सगा। 

मगर खाय लइका बरा पाय हे। 


हमर घर तुँहर घर उँखर घर बने। 

सबो घर पितर मा बरा छाय हे। 


रचनाकार--दिलीप कुमार वर्मा 

बलौदाबाजार छत्तीसगढ़

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