छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121 1221 212
सब तीर मोर चरचा खुले आम हे इहाँ।
कोई बने हवे कोई बदनाम हे इहाँ।1
तैं कर दे मोर जिवरा ला कतको कुटी कुटी।
टूटे फुटे जिनिस के घलो दाम हे इहाँ।2
बूता करैया हा कोई तैयार होय तो।
हर हाथ बर कई ठने जी काम हे इहाँ।3
कोनो दवा के नाम मा भागत घलो दिखे।
ता कोनो कोनो मन ला तिरत जाम हे इहाँ।4
मनभर तैं गोठ करले कहाँ होय रात हे।
ममता मया के गाँव मा शुभ शाम हे इहाँ।5
इंसान नेक कम मिले जादा छली ठगी।
छइहाँ ले बढ़के तो घलो बड़ घाम हे इहाँ।6
ईमान मनखे के बिके जइसे जमीन रे।
सच मा जिया के भीतरी का धाम हे इहाँ।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
No comments:
Post a Comment