Total Pageviews

Tuesday, 7 July 2020

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल-सुखदेव

बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर

फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा

बहर--212 212 212 2

जब ये सावन ह रिमझिम बरसही
धान हा चोभियाही सरसही

देख के लहलहावत फसल ला
सब किसानन के मन हा हरसही

लकठियाही परब पोरा-तीजा
मन कई मइके कोती लरसही

धान हा माथ-अरोही कुॅंवरहा
सुख सरग साफ सॅंउहे दरसही

भैया सुखदेव हन हम शहर मा
मेंढ़ मा बइठे बर मन तरसही

-सुखदेव सिंह'अहिलेश्वर'

4 comments:

गजल

 गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...