,छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121 1221 212
माँ बाप जइसे देंवता पाबे भला कहाँ।
देबे दरद ता दिल मा समाबे भला कहाँ।1
सरकार सँग लगात हे दिनरात पेड़ सब।
सब्बे जघा भरे हे लगाबे भला कहाँ।2
झन छीत दाना फोकटे कोनो फँसे नही।
चतुरा हे चिड़िया जाल बिछाबे भला कहाँ।3
बसगे हवस शहर मा ठिहा खेत बेंच के।
आही विपत कहूँ ता लुकाबे भला कहाँ।4
रँगरँग के खाले रे बने जब तक पचत हवय।
बुढ़वा मा तीन तेल के खाबे भला कहाँ।5
कतको उपर उड़ा उगा डेना घमंड के।
माटी ले तोड़ के नता जाबे भला कहाँ।6
ना तोप बरछी भाला हे हिम्मत घलो नही।
शत्रु ला ता समर मा हराबे भला कहाँ।7
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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Tuesday 8 September 2020
छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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गजल
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
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ग़ज़ल -जीतेंन्द्र वर्मा'खैरझिटिया'* *बहरे रमल मुरब्बा सालिम* *फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन* *2122 2122* पैदा होवत पर निकलगे। फूल के बिन फर निकल...
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गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
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गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" *बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम* *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन* *2212 2212 2212* अब बता बिन काम के...
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