गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिय मुसम्मन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
इरखा म बस जरत हवे मनखे ह आज के।
आपस म लड़ मरत हवे मनखे ह आज के।
मनखे डरा के भाग थे मनखे ल देख के।
बिसवास नइ करत हवे मनखे ह आज के।
सब जानथे गलत सही तब ले झपा जथे।
लालच म सब परत हवे मनखे ह आज के।
भव पार जाय बर तो ग बस राम नाम हे
कचरा ले घर भरत हवे मनखे ह आज के।
रहिथे मुड़ी नवाय ये जाथे जिहाँ सगा।
काखर ले बड़ डरत हवे मनखे ह आज के।
ताकत सबो सिराय गे कचरा ल खाय के।
पतझड सही झरत हवे मनखे ह आज के।
जाँगर बचे नही सबो दारू ह ले घले।
बस दाँत ला दरत हवे मनखे ह आज के।
रचानाकार-- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
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Tuesday 8 September 2020
गजल- दिलीप कुमार वर्मा
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गजल
गजल पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खात हावँय घूम घुम...
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गजल-जीतेंद्र वर्मा "खैरझिटिया" *बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम* *मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन* *2212 2212 2212* अब बता बिन काम के...
बहुत बहुत धन्यवाद वर्मा जी
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