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Wednesday, 2 September 2020

गजल-अरुण कुमार निगम

गजल-अरुण कुमार निगम


*बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़*

मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन

*221 2121 1221 212*


जुगनी अँजोर मा कभू रद्दा दिखै नहीं

काँटा दिखै नहीं कभू पथरा दिखाई नहीं।


तरिया मा तोर मन के भराए हे खोकसी

रोहू दिखै नहीं कहूँ भुण्डा दिखै नहीं।


भूँसा भरे अनाज बता कोन राँधही

चलनी दिखै नहीं इहाँ सूपा दिखै नहीं।


कउँआ के माथ सोन मुकुट तोर राज मा

हंसा के हाथ ताम के तमगा दिखै नहीं।


आगी मा अपन तन ला 'अरुण' कोन बारथे

बाती दिखै नहीं इहाँ दियना दिखै नहीं।


*अरुण कुमार निगम*


*ये बहर मा सुप्रसिद्ध फिल्मी गीत*


गुजरे हैं आज इश्क़ में हम उस मकाम से

नफरत सी हो गई है मुहब्बत के नाम से।


आये बहार बनके लुभा कर चले गए

क्या राज था वो दिल में छुपाकर चले गए

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