गजल- दिलीप कुमार वर्मा
बहरे मज़ारिब मुसमन अखरब मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
लकड़ी तको नराज हे प्लास्टिक के आय ले।
चुलहा तको नराज सिलिन्डर जलाय ले।
रखथे लुका के खाय के सामान ला तको।
कहिथे सिरा जही सबो ह तोर खाय ले।
बाँटे तको सके नही पोटार के रखे।
का काम अइसे ज्ञान के मिहनत म पाय ले।
गरजे चमक चमक के ओ डरव्हा के चल दिए।
बरसे बिना का काम के बादर के छाय ले।
लइका बियाय चार त परिवार बाढ़ गे।
पूरय नही अनाज ह कतको कमाय ले।
ढुलमुल विचार के कभू बिसवास झन करव।
पेंदी बिना लुढ़क जथे लोटा मढ़ाय ले।
कतको करे दिलीप बुराई भले इहाँ।
कहिथे सबो बने बने दुनिया ले जाय ले।
रचनाकार-- दिलीप कुमार वर्मा
बलौदाबाजार छत्तीसगढ़
Total Pageviews
Friday, 4 September 2020
गजल- दिलीप कुमार वर्मा
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
गजल
गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...
-
गजल 2122 2122 2122 पूस के आसाढ़ सँग गठजोड़ होगे। दुःख के अउ उपरहा दू गोड़ होगे। वोट देके कोन ला जनता जितावैं। झूठ बोले के इहाँ बस होड़ होगे। खा...
-
गजल- दिलीप कुमार वर्मा बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़ फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन 212 1212 1212 1212 रोज के...
-
गजल बहरे मुतकारीब मुसमन सालिम फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन बहर- 122 122 122 122 घरो घर सफाई ल मजदूर करथे। लिपाई पुताई ल मजदूर करथे। भर...
धन्यवाद वर्मा जी।
ReplyDelete