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Tuesday 8 September 2020

छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

 छत्तीसगढ़ी गजल-जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

*बहरे मज़ारिअ मुसमन अखरब  मकफूफ़ मकफूफ़ महजूफ़*
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
अरकान-221 2121  1221 212

अपने अपन जरे मरे का काम के उहू।
खुद के बिगाड़ा खुद करे का काम के उहू।1

छाती ठठाये बीर हरौं कहिके जौन हा।
रण मा लड़ाई ले डरे का काम के उहू।2

बेटा उही जे माने ददा दाई के बचन।
जे मूँग छाती मा दरे का काम के उहू।3

चिरहा बदन के ओनहा उन्ना घलो उदर।
कोठी मा धन भरे सरे का काम के उहू।4

तड़पे परोसी भूख मा लइका सियान संग।
झड़कत हवस घरे घरे का काम के उहू।5

रटते रटत बबा कका परदेसी मन इहाँ।
पग छोड़ घेंच ला धरे का काम के उहू।6

नारा सुनाथे सब तनी बस पेड़ पेड़ के।
छेरी सहीं मनुष चरे का काम के उहू।7

जे प्यास नइ बुझा सके कोनो पियासे के।
हावै समुंद कस भरे का काम के उहू।8

भागे भभूत मा धरे डर भूत आन के।
जब खुद के नइ विपत टरे का काम के उहू।9

जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)

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